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पावनी की कल्पना के पंख

पावनी की कल्पना के पंख

आज बालकनी  में बैठी हुई हुई पावनी को अपनी प्रशंसा  बजी  तालियाँ की गड़गड़ाहट की गूंज मधुर सी प्रतीत हो रही है।  आज उसके उपन्यास (परिंदों का आसमान)का विमोचन शहर के गणमान्य साहित्यकारों के मध्य प्रसिद्ध कहानीकार मृदुल जी ने किया और उसकी  स्त्री विषयक कहानी (शुल की चुभन)की चर्चा मृदुला जी ने अपने व्याख्यान में भी की । आज सच में पावनी  के जीवन में सुनहरी आभा बिखरने वाला दिन रहा,यही सब सोचते सोचते वह बचपन की कल्पनाओं को याद कर बचपन की यादों में खो सी जाती है । पावनी जब छोटी थी ,तब मोहल्ले के सभी बच्चों के साथ शाम को अढ़िया वाले नीम के नीचे खेला करती थी ,वहीं पेड़ के नीचे मोहल्ले के सभी बाबा जी लोग पेड़ की छांव में बिछी चारपाईयों पर बैठे बातें करते रहते और बच्चों का ध्यान रखते शरारत करने वाले बच्चों को दादाजी डांट भी दिया करते थे तो रोजना  कोई ना कोई दादाजी बच्चों के लिए खाने के लिए खाने की चीज लाते और बच्चों को जब खाने की चीज देते तो बच्चों की खुशी देख सभी दादाजी भी बहुत प्रसन्न होते ,जब बच्चे खेलते खेलते ज्यादा शोर मचाने लगते तो ,उनको अपने पास बुलाकर अच्छी-अच्छी बातें बताते और छोटी-छोटी कहानी सुनाते ,उन कहानियों को सभी बच्चे बड़े ध्यान और चाव से सुनते । दादाजी कहानी सुनाने के बाद बच्चों से भी छोटी-छोटी कविता कहानी सुनते ,अधिकतर बच्चे जानवरों की कहानी सुनाते,जिन्होंने पढ़ रखी होती या सुन रखी होती । तभी दादाजी हर बच्चे की प्रशंसा करते और हौसला बढ़ाते । पावनी को दादाजी की एक बात हमेशा दिमाग में रहती कि बच्चों पैसा कमाने से ज्यादा कठिन है बाहर वालों के बीच अच्छी पहचान बनाकर नाम कमाना,इसलिए हमेशा अपनी अच्छे कर्मों से सबके दिल में जगह बनाओ पावनी ने मोती बाबा की बात को बहुत ध्यान से सुन रखा था ,हमारे साथ कोई अगर बुरा व्यवहार करें तो हमें उसके साथ बदला लेने के लिए बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए नहीं तो हममें और उसमें फर्क ही क्या रह जाएगा । बहुत ध्यान से पावनी यह  सब बातें सुना करती थी,पावनी जब घर वापस आती तो उसके दिमाग में वहां के सभी दादाजी की बातें घूमती रहती  और वह कल्पनाओं में खो जाती ,कि वह स्कूल में सभी बच्चों के बीच खड़ी है तभी प्रधानाचार्य जी ने स्कूल की प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त  करने पर पावनी  पुकारा जा रहा है,उसका नाम सुनकर सभी बच्चे तालियां बजा रहे हैं और प्रधानाचार्य जी उसको मेडल पहना रहे हैं ,छोटी पावनी अपनी कल्पना को साकार करने के लिए जो भी उसके दिमाग में अच्छी बातें आती ,उसको लिखती और शाम को नीम के नीचे बैठे हुए दादाजी लोगों को सुनाती तो सभी बहुत ही खुश होते ,प्रशंसा करते और अच्छा लिखने का आशीर्वाद देते और सभी बच्चों से उसकी लिखी बातों को सुनने का कहते  बच्चे भी तालियां बजाते  बच्चों की तालियों की आवाज में पावनी की कल्पना को साकार सी लगती पावनी की लिखी बातें धीरे-धीरे छोटी-छोटी कहानियों का रूप लेने लगी ,मोहल्ले के बच्चों के साथ अब अपने स्कूल में भी अपनी कहानी सुनाती स्कूल में भी सब उसकी छोटी-छोटी कविताओं और छोटी-छोटी कहानियों को ध्यान से सुनते धीरे-धीरे पावनी को स्कूल में छोटी सी कहानीकार कहकर बच्चे बुलाने लगे ,स्कूल की वार्षिक पत्रिका में उसकी कहानी और कविताओं को पहले स्थान पर,उसके परिचय और फोटो के साथ छापा गया तो उसे बहुत ही प्रसन्नता हुई लोगों के बीच  सम्मान और पहचान पाने की उसकी कल्पना को  पंख मिलने पर  उसके हौसले  और भी ज्यादा मजबूत हो चुके थे बचपन की कल्पना को ही आज पावनी  साकार रूप में पाती है।

आपकी समीक्षा मुझे प्रोत्साहित करेगी 🙏🎉🎉🎉🙏 जया शर्मा प्रियंवदा

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1 Comments

RISHITA

01-Jun-2024 07:35 PM

Amazing

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